पत्तों कि छाओं में अपनी सेज को ढूँढा ,
उलझी हुयी राहों पे अपनी मंजिल को ढूँढा
भिखरी हुयी रेत पे अपना नाम ढूँढा ,
चट्टानों से टकराती हुयी लेहेरों में अपनी आवाज़ को ढूँढा
हर नाव में अपनी पतवार को ढूँढा ,
हर मायूसी में अपने हौसलों को ढूँढा ,
हर नाकामी में अपनी कामयाबी को ढूँढा ,
हर ख़ामोशी में अपनी दहाड़ को ढूँढा
अपने दबे हुए अरमानों में उमंगों को ढूँढा ,
अपने सिले हुए होटों में जवाबों को ढूँढा ,
इन तनहाइयों में उस चेहरे को ढूँढा ,
और उस चेहरे में फिर खुद को ढूँढा
कहाँ गलत ढूँढा ? कहाँ नहीं ढूँढा ?
पर ये तलाश अभी जारी है .......
Monday, January 10, 2011
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इस छोटी सी कविता में एक कवी को ढूँढा....
ReplyDeletemast likha hai di.....)
Ravi