Monday, January 10, 2011

ढूंढती मैं !

पत्तों  कि  छाओं  में  अपनी  सेज को  ढूँढा ,
उलझी  हुयी  राहों  पे  अपनी  मंजिल  को ढूँढा
भिखरी  हुयी  रेत  पे  अपना  नाम  ढूँढा ,
चट्टानों  से  टकराती   हुयी   लेहेरों  में  अपनी  आवाज़  को  ढूँढा

हर  नाव  में  अपनी  पतवार  को  ढूँढा ,
हर  मायूसी   में  अपने   हौसलों   को  ढूँढा ,
हर  नाकामी  में  अपनी  कामयाबी  को  ढूँढा ,
हर  ख़ामोशी  में  अपनी  दहाड़  को  ढूँढा

अपने  दबे  हुए  अरमानों  में  उमंगों  को  ढूँढा ,
अपने  सिले  हुए  होटों  में  जवाबों  को  ढूँढा ,
इन  तनहाइयों  में  उस  चेहरे  को  ढूँढा ,
और  उस  चेहरे  में  फिर  खुद  को  ढूँढा

कहाँ  गलत  ढूँढा ? कहाँ  नहीं   ढूँढा ?
पर  ये  तलाश  अभी  जारी  है .......

1 comment:

  1. इस छोटी सी कविता में एक कवी को ढूँढा....

    mast likha hai di.....)

    Ravi

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